तेरी यादें कि जिनको बहुत दिन हुएछोड़कर एक चौराहे पर ज़ीस्त के
चल पड़ा हूं मैं एक अजनबी राह पर
अपनी मंज़िल से हूं बेख़बर में मगर
दर्द की वादियों का यह तन्हा सफर
तय किए जा रहा हूं अकेला ही में
मय पिए जा रहा हूं ग़मे ज़ीस्त की
अबकि जब मुझको तेरी ज़रूरत नहीं
और किसी हमसफर की भी चाहत नहीं
फिर भी गाहे-बगाहे अचानक कहीं
थाम लेती हैं क्यों मेरे दामन को ये
छेड़ करती हैं क्यों मेरे जज़्बात से
बन के यादें तेरी दिलनशी दुल्हनें
अपने चेहरों से घूंघट उठाती हैं क्यों
गुदगुदाती है क्यों मेरे अहसास को
मेरी तन्हाईयों को जगाती हैं क्यों
तेरी यादें के जिनको बहुत दिन हुए
Inayat
05-Mar-2022 01:35 AM
👌👌👌
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Arshi khan
03-Mar-2022 06:35 PM
Bahut khoob
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Abhinav ji
26-Feb-2022 08:58 AM
Nice
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