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लेखनी प्रतियोगिता -24-Feb-2022 तेरी यादें


तेरी यादें कि जिनको बहुत दिन हुए
छोड़कर एक चौराहे पर ज़ीस्त के
चल पड़ा हूं मैं एक अजनबी राह पर
अपनी मंज़िल से हूं बेख़बर में मगर
दर्द की वादियों का यह तन्हा सफर
तय किए जा रहा हूं अकेला ही में
मय पिए जा रहा हूं ग़मे ज़ीस्त की
अबकि जब मुझको तेरी ज़रूरत नहीं
और किसी हमसफर की भी चाहत नहीं
फिर भी गाहे-बगाहे अचानक कहीं
थाम लेती हैं क्यों मेरे दामन को ये
छेड़ करती हैं क्यों मेरे जज़्बात से
बन के यादें तेरी दिलनशी दुल्हनें
अपने चेहरों से घूंघट उठाती हैं क्यों
गुदगुदाती  है क्यों मेरे अहसास को
मेरी तन्हाईयों को जगाती हैं क्यों
तेरी यादें के जिनको बहुत दिन हुए

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7 Comments

Inayat

05-Mar-2022 01:35 AM

👌👌👌

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Arshi khan

03-Mar-2022 06:35 PM

Bahut khoob

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Abhinav ji

26-Feb-2022 08:58 AM

Nice

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